कांटों से चुभन हो तो फूलों से संवर जाएगी
फूलों की चुभन लेकिन ताउम्र ही तड़पायेंगी
जब इश्क का दामन ही शोलों से दहकता है
आएंगी अगर जद में तो जान झुलस जाएंगी
कहने को तो गुलशन में अब रंगीन नजारे हैं
जाते ही बहारों के कलियां तो बिखर जाएंगी
हम चैन से सोते हैं सब कुछ लुटाकर अपना
है इतना सुकून हमको ये रातें ही डर जायेंगी
इतना तो समझ लेना है अब दास मुहब्बत में
एक जान बचेगी पर कई जान उधर जाएंगी