कापीराइट
छोङ कर गांव को हम शहर आ गए
यह राज सारे शहर के नजर आ गए
यहां उजाले हैं कम ये अन्धेरे हैं बहुत
हर कदम पर अन्धेरे यूं नजर आ गए
आदमी की यहां पर कोई कीमत नहीं
बेईमान हर गली में यूं नजर आ गए
प्यार रिश्तों में अब कहीं झलकता नहीं
हम को रिश्ते यह झूठे नजर आ गए
कमी नहीं है कोई इन हादसों की यहां
जो तर लहू से ये दामन नजर आ गए
लोग सब शहर के ये जीते हैं खौफ में
हाथ जब इन दबंगों के कहर ढ़ा गए
पास रह कर भी सब अजनबी हैं यहां
यह जुर्म उनके सभी जब नजर आ गए
ये गांव बेहतर हैं अब शहर से यादव
छोङ कर गांव हम क्यूं शहर आ गए
लेखराम यादव
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