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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

क्यूं शहर आ गए

कापीराइट

छोङ कर गांव को हम शहर आ गए
यह राज सारे शहर के नजर आ गए
यहां उजाले हैं कम ये अन्धेरे हैं बहुत
हर कदम पर अन्धेरे यूं नजर आ गए

आदमी की यहां पर कोई कीमत नहीं
बेईमान हर गली में यूं नजर आ गए

प्यार रिश्तों में अब कहीं झलकता नहीं
हम को रिश्ते यह झूठे नजर आ गए

कमी नहीं है कोई इन हादसों की यहां
जो तर लहू से ये दामन नजर आ गए

लोग सब शहर के ये जीते हैं खौफ में
हाथ जब इन दबंगों के कहर ढ़ा गए

पास रह कर भी सब अजनबी हैं यहां
यह जुर्म उनके सभी जब नजर आ गए

ये गांव बेहतर हैं अब शहर से यादव
छोङ कर गांव हम क्यूं शहर आ गए
लेखराम यादव


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

Kapil Kumar said

Sahi kh rahe hain aap...ham sahar chle aate hain soch ke ki yha tarraki hogi. Pr yha ke mayajal m ase fas jate hain.or sukun Chen do roti kuch nahi milta. Neend to gaaon m usi neem ke ped ke niche sukun se aati thi. Ab AC m bhi nahi aati.

Lekhram Yadav replied

धन्यवाद कपिल जी आपने गजल को समझकर उसकी व्याख्या की।

Amit Shrivastav said

Bahut khoob soorat ghazal

Lekhram Yadav replied

अमित श्रीवास्तव जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि आपको ये गजल पसंद आई।

रीना कुमारी प्रजापत said

इसीलिए तो हम गांव में ही रहते हैं जो ठंडी ठंडी हवा गांव में होती है वो शहर में कहां होती है.. बहुत खूबसूरत

Lekhram Yadav replied

मेरी प्यारी बहना शुक्रिया यह याद दिलाने के लिए कि गांव शहर से अच्छे होते हैं। मुझे भी गांव बहुत अच्छा लगता है,लेकिन क्या करूं मजबूरी है शहर में रहना।

रमेश चंद्र said

गांव के सौंदर्य की इतनी सुंदर व्याख्या बहुत अच्छे

Lekhram Yadav replied

नमस्कार रमेश चन्द्र जी आपका हार्दिक स्वागत एवं धन्यवाद।

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