हाथ कंगन को आरसी क्या
पढें लिखे को फारसी क्या
जिनके लिए काला अक्षर
है भैस समान
खाई से निकल कर खंदक
मे कूद गयें
अब बैठ रोना रो रहे
थोथा चना बाजै घना
ज्यों गज भर छाती होना
बंदर क्या जाने अदरक स्वाद
ऊची दुकान फीके पकवान
ये मुंह और मसूर की दाल
बंदर के हाथ आ गयी तलवार
होने को क्या रह गयीं अब बात
भैस के आगे बीन बजाने से
होगा क्या अब लाभ
अपने मुह मियां मिट्ठू हो
गये जनाब
सब मिल छान रहे है खाक
खीरे ककड़ी की तरह कट गयें
वो सिंदूर मिटाने वाले
खेल बिगड़ गया सारा
अब बस है ख्याली पुलाव
बनाना
दाना पानी उठ गया करतें हैं
शांति की अब बात
गिरगिट की तरह रंग बदलना
जिनका है काम
✍अर्पिता पांडेय

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




