क्या तुझे पता है ?
तेरी गलियों में अक्सर आते हैं हम.....
एक महफ़िल तेरी गलियों में सजाते हैं और तेरी दास्तां- ए - इश्क़ सुनाते हैं हम......
तेरी गली का हर इंसा
दास्तां -ए- इश्क़ सुनता है मेरी जुबानी......
तेरी गली का हर इंसा
सुनाएगा किसी और गली में
दास्तां -ए -इश्क़ तुम्हारी.........
क्या तुझे पता है ?
हमारे दिल में भी रहता है तू ......
दिन - रात किसी और के ख़्वाबों में भी चलता है तू......
जानते हैं तेरे दिल के छोटे से कोने में भी
नाम नहीं हमारा .......
पर तेरी दास्तां -ए- इश्क़ में नाम शामिल हमने किया है हमारा.......
~ रीना कुमारी प्रजापत