नेता तेरे वादों से अबतो
मन ऊब गया है रे।
सरकारी लाभ की नौका तो
पनघट पे डूब गया है रे।
बेबस लोगो को जब भी
मैं अक्सर देखा करता हूँ।
मन अन्तस् में नित कर्मो का
लेखा -जोखा करता हूँ।
कुछ तो विकास के बैनर तलक
दंगे करवाते है।
और इसी कर्म को अपना
सर्वोत्तम प्रयास बताते है।
वक्त है ऐ मित्रो अब तुम
इस मलिन युग का अंत करो।
सही व्यक्ति चुनकर के
प्रदेश में नया वसन्त करो ।
चरण रज की प्यासी आत्मा
श्वेत वस्त्र धारण कर आएगी l
शब्दों के चंद्र यान से तुम्हे
चंदा तक सैर कराएगी ll
जिनके सम्मुख तुम खड़े न हो सकते
वो आपके चरणों में होंगे।
ये महान कलुष लोभी मानव
एक नहीं कई वर्णों में होगें ll
हाँ एक बात का ध्यान रहे
बिन सोचे दया नहीं करनी l
माया मुक्त गर होने का मन है
तो जाति पे मया नहीं करनी
खंभे ,मुर्गे के शौक़ीनो
शौक़ीन त्याग अब देना तुम l
चाहे कोई कितना लालच दे
एक्को रुपया मत लेना तुम ll
मताधिकार पर धिक्कार न हो
ऐसी सरकार को चुनना तुम l
पांच साल अच्छे से चले
ऐसे लोकतंत्र को बुनना तुम ll
-सिद्धार्थ गोरखपुरी