दर्द समेट कर खामोश हो गई।
पीड़ा घुटन वाली रहीं सो गई।।
अपने मन का दुख कह सकीं।
आवाज फैलते कमरे में रो गई।।
चुप कराने वाला नही 'उपदेश'।
फूट फूटकर रोई बेहाल हो गई।।
उसका विलाप प्राकृति देखती।
खुद को चुप कराते सहर हो गई।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद