घने जंगल की छाया में,
जब चहकते थे पंछी प्यारे,
हरिण क्रीड़ा करते निर्भय,
झरनों की धुन लगती न्यारे।
पर अब वो संगीत नहीं है,
अब वो हरियाली नहीं,
धधकते हैं वन, कांपते हैं मन,
विकास की यह कैसी छँटनी?
शेर की दहाड़ भी अब थरथराए,
हाथी की चाल भी डगमगाए,
तेंदुए की आँखें पूछें सवाल,
“हमारा घर क्यों उजड़ाए?”
चिड़ियों का घोंसला टूटा,
साँप बिलों से भाग चला,
बंदर मीलों दूर भटकते,
मानव लोभ का क्या हल चला?
पेड़ काटे, जलसूत्र सुखाए,
शिकारी बन कर हम ही आए,
अब जो शेष बचा है वन में,
वो भी असहाय हो चिल्लाए।
"हम भी जीव हैं, इस धरती के,
हमारी भी है एक जगह,
सुनो हमारी मौन पुकार,
मत छीनो हमसे ये अल्प शरण!"
चलो फिर मिलकर संकल्प लें,
हर जीव को जीवनदान दें,
संवेदनाओं का दीप जलाएं,
प्रकृति का संतुलन फिर से लाएं।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




