बीता हुआ पल ए कस्तूरी जैसा है
है ए अपने भीतर पर,कही खोया हुआ है
चंदन की खुश्बू जैसे यादों में फैली है
है ए अपने भीतर पर,रुक रुक से आती हैं
हसीन ए वादियां मन मोहित बड़ी है
है ए अपने भीतर पर,नजारों की कमी है
कोमल मृदु भास स्पंदन में अपार हैं
है ए अपने भीतर पर,जाहिर कहां होता है
जग संसार बड़ा और खाईशे अनेकों है
है ए अपने भीतर पर,तर्कों में अक्सर लड़े है
छोड़ना एक दिन सब को सब कुछ है
है ए अपने भीतर समझ पर, त्याग कहां आएं हैं
तेरा मेरा बस ए लड़ाई और हक़ दावा है
है ए अपने भीतर दया पर, आत्मीजन कौन है