कल कल करती मैं कोसी
कल कल करती मैं कोसी
दूर पहाड़ो से इठलाती बलखाती
हुई जब मैं निकली ,मैदान में
चारों ओर छायी हरियाली खेत और खलिहान में
घर घर सज गयी खुशहाली गांव शहर मकान में
पर हाय रे मनुज तेरे लालच ने मुझे ही खोद डाला और बांध दी मेरी धाराएं
अब रोती हूं सिसकती हूं पछताती हूं
कि लौट जाऊं फिर उन्हीं बर्फीली हरी भरी वादियों में
और छोड़ जाऊं यहां भुखमरी वीरानी
तब समझोगे मेरा महत्व और उपकार की तुम कहानी
कल कल करती मैं कोसी -२
,✍️#अर्पिता पांडेय