जो हमारी पीर से अनजान है
उसकी मुट्ठी में हमारी जान है
आंख में आंसू हमारे पाँव में छाले
हर कदम पर एक नया शैतान है
वो भला देगा किसी को क्या पनाह
भीख पर खुद पल रहा सुल्तान है
दूध पर हरगिज उसे मत पालिये
सिर्फ डसने का जिसे वरदान है
जिन्दगी माना जरा मुश्किल है दास
मौत भी लेकिन कहाँ आसान है
मेरे घर के सामने. है अस्पताल
और पिछवाड़े. निरा शमशान है II