मयस्सर नहीं दो जुन की रोटी ।
नोच ना ले किसी गरीब की बोटी ।
यहां उल्टी गंगा बहती है।
ध्यान से सुनना इन लहरों को
कितनी दर्द भरी ध्वनि निकलतीं हैं।
खूबसूरत दिख रही इस दुनियां में
कितनी प्यार पे कसती है।
ये दुनियां एक तरफ़ रंगीन
तो दूसरी तरफ़ रंगहीन दिखती है।
और रिश्तों के ताने बाने क्या कहिए जनाब
यहां बाप बेटे का बेटा तो मां बेटे की बीबी
बन जाती है , अब और क्या कहें यारों..
यहां रिश्तों की तो मां बहन हो जाती है।
चकाचौंध के इस औंध में
सबकुछ फीका फीका है।
कौन कहो कब कहां हारा कब कहो कौन जीता है।
पाप सागर में पुण्य खड़ा हो
पाप को अपने धोता है।
यहां आंख वाले अंधे
कान वाले बहरे
और जबान वाले गूंगे हैं।
गलियों में बहार की
रंग खिजां के गहरें हैं।
जहां ना मान मर्यादा का ख्याल
लोगों की हो टेंढी चाल।
जो चलते हर समय गहरी चाल।
यहां अपने अपनों से हैं परेशान
फिरभी ना जाने किस बात का है अभिमान
यहां बात बात पर लोग आपा खोतें हैं।
सौ बीघे की जोत हैं फिरभी
आने आने के लिए लड़ते हैं।
मयस्सर नहीं सभी को दो जुन की रोटी
क्या इसी को सोने की चिड़ियां कहते हैं..
क्या इसी को सोने की चिड़ियां कहते कहते...