अथाह सागर सी भावनाओं को समेटे।
कोई देख रहा दूर से विरक्त भाव मेटे।।
ख्वाबों में कोई बुन रहा नरम एहसास।
आए कभी सामने इत्र की खुशबू समेटे।।
प्रेयसी किसी की कोई इंतजार तकता।
सर्दी के मौसम में मखमली रज़ाई लपेटे।।
तुम वन जैसे टस से मस न होते 'उपदेश'।
विलीन होते अवशेष को कोई तो समेटे।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद