ये ऑंसु पलकों पर ही दस्तक दिए बैठे हैं,
इशारा मिलते ही निकल पड़ते हैं।
ये ऑंसु हमसफ़र है सभी के,
ख़ुशी और ग़म दोनों में साथ रहते हैं।
ये ऑंसु नासमझ है,
बिना सोचे समझे कहीं भी टपक पड़ते हैं।
इन ऑंसुओं को शिकवा नहीं किसी से,
ये तो अपने भाग्य पर रोते हैं।
ये बड़े ही ज़िद्दी होते हैं,
एक बार शुरू हो जाए तो फिर रुकते नहीं।
इन ऑंसुओं की कीमत से वाक़िफ़ नहीं कोई,
लोग इन्हें बहने पर मजबूर कर देते हैं।
ये ऑंसु हमारे सबसे करीब होते हैं,
तभी तो हमारी भावनाओं को समझते हैं।
----रीना कुमारी प्रजापत