कापीराइट गजल
सुख की चाह में घाव मिले अब दुख की क्या बात करें
ये दुख तो है बदनाम यूं ही
इस दुख की क्या बात करें
कितने ही दिन कष्ट में बीते यह थोड़ा सा सुख पाने को
बीते गए दिन काम में सारे
हम रातों की क्या बात करें
जीते हैं सब लोग यहां पर अपने लिए अपनों के लिए
ये जीते हैं सुख की खातिर अब क्यूं औरों की बात करें
जब वक्त अपना गुजर गया
यह भरम हमारा टूट गया
हर लम्हा वक्त का छूट गया
वक्त से क्या मुलाकात करें
पल भर के सुख की खातिर
यह हर मानस परेशान हुआ
सुख के लिए दुख झेल रहा यादव इसकी क्या बात करे
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है