एक शासन की नींव उस मानसिकता में छिपी जहां वो वास्तविकता के शब्द किसी कंठ की गिरफ्त में हो, क्यों वे शासक बार बार दहलीज़ पार करता और दिखाता है कि वो है या वो ही है, उसके भीतर मोहरें इतनी बिखरी है कि वो अब बिखरने की विपदा से बाहर है, केवल परिधि माप की या परिक्रमा के लिए नहीं है वे क्षेत्रफल से जीवित होने वाली है, एक एक भाग में अभागे ही नजर आ रहे हैं, ये शासन के बीज घूमें जा रहे हैं, अब बेइज्जती डर लगा और मुँह खुला रहा, जवाब क्या दे, क्योंकि अपने भीतर से खाली थे, क्या करें।