मन भर गया है और आँखें भी
न पलकों से आँसू टपकते हैं
दर्द किस हद तक ताले लगा देता
न लबों से कोई बोल फूटते हैं
पत्थर भी इंसान ही रहा होगा
जाने कब वेदनाओं से भर गया होगा
अब नही होती व्यक्त संवेदनाएँ
न पलकें छलकती ना होंठ खुलते हैं
वेदना दिन पर दिन गहरी होती गई
शायद फिर एक दिन पत्थर बन जायेंगे
पाखण्ड बढ़ायेगा तिरस्कार 'उपदेश'
न सच बिलबिलाता बस झूठ बजते हैं
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद