आरज़ू थी जिसकी उसे क्यूंँ खो दिया पाने के बाद
अब क्यूँ बरसती है अंखियाँ उसके जाने के बाद
क्या मालूम नहीं मंज़िल तमाम उम्र ढूंढती है
सफ़र में एक क़दम भी ग़लत उठ जाने के बाद
जो वक़्त की नज़ाकतनज नहीं समझा वो नादाँ है कितना
"श्रेयसी" पछताने से क्या होता है वक़्त निकल जाने के बाद