हां मुझे उसके बारे में इतना याद है,
कि कोई तो थी
जो बचपन में मेरी अठखेलियां पर हंसती थी
हो जाती थी मैं थोड़ा उदास,
वह खुद परेशान हो जाती थी।
चेहरा पूरा याद नहीं आ रहा मुझे ,
पर उसकी जान मेरे में बसते थी।
फिर भी वह कोई तो थी ,
जो बचपन में बालों में तेल लगाती थी।
और कस कर चोटी बांध देती थी
लोरी सुनाती,
मेरे सोने पर खुद सो जाती है ।
आज जब कोई नहीं है
केवल याद बनकर रह गई है ।
न्यायालय में फरियाद बन कर रह गई है ।
शायद मां के हथियारों को न्यायलय दण्डित करे,
हथियारों को भीतर से भी खंडित करें ।
मैं बड़ी तो हो जाऊंगी पर मां नहीं आएगी ,
उसे समय मेरे साथ वह नहीं होगी
जब मुझे उसकी सिख की जरूरत होगी
वह नहीं होगी ,
जब मैं बनूंगी ,
किसी घर की पुत्र वधू
वो शायद कोई तो थी
----अशोक सुथार