किरदार जो महफ़िलों में,
....गमो को भुलाने पहुचा करते हैं,
रूठ जाते हैं खुद से,
....लेकिन यादों के बहाने पहुचा करते हैं,
नही हैं मेहफिलो मे किरदार तो,
....तवायफ़ का कोठा भी सूना लगता है,
और हो जाती है सूनी महफ़िल भी,
....जब किरदार ना पहुचा करते हैं,
....जब किरदार ना पहुचा करते हैं,
सर्वाधिकार अधीन है