मैंने तुम्हें आज फिर चुपचाप याद किया…
इतना चुपचाप कि जैसे कोई सांस ले रहा हो बिना आवाज़ के..
जैसे कोई साज़ सुर निकाल रहा हो हवा के राज से..
ना कोई आँसू बहा, ना किसी से कुछ कहा, ना चेहरे पर कोई शिकन आई…
सब कुछ एकदम सामान्य था पर भीतर बहुत कुछ उथल-पुथल चल रही थी।
धूप की तपिश में भी, अंधेरे की खामोशी में भी और उस हल्की-सी बारिश में भी हर एक बूँद जैसे तुम्हारा नाम लेकर गिर रही थी।
पर दिल के भीतर…एक तूफान मचल रहा था। हर धड़कन में एक पुकार थी, हर सांस में एक सिसकी बिखर रही थी।
हाँ,
मैंने तुम्हें आज फिर चुपचाप याद किया पर उस खामोशी की गूंज...मेरे दिल से तुम्हारे दिल के अंदर बिसर रही थी।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद