ख्वाब आंखों में, कुछ ऐसे पल जांए
सलीका जीने का, यूं ही बदल जाएं
तमन्नाओं की डोर में,आ बंधे तमन्नाएं
बनें हमकदम, और,साथ साथ चल जाएं
मंथन करते जाएं, सागर से सागर
हरेक मंथन में, शायद, अमृत निकल जाएं
कारवां अब भी हमारा, इंतजार कर रहे हैं
चलो, यारों, कहीं, समय न निकल जाएं
वतन हमारा है, वतन के लोग हमारे हैं
सत्कर्मों से, शायद, मन बहल जाएं।।
सर्वाधिकार अधीन है