- अशोक कुमार पचौरी - कल कल बहता नदिया का जल
कल कल करता
बहता रहता
अविरल इस
नदिया का जल।
झिलमिल झिलमिल
कभी हिले तो
कभी खिले हैं
इन पर फूल।
कभी धूप में साया बनकर
थके पथिक को ढांढस देते
पतझड़ में गिर जाते पत्ते
और कभी जीवन फल देते।
ये भी धूप में साया बनकर
थके पथिक को ढांढस देते
और कभी ये,गरज बरस कर
किसानो को कर देते खुश।
मेरा सभी पाठको से अनुरोध है कि आइये कम से कम जीवन में एक वृक्ष लगा लेते हैं और पानी का दुरूपयोग न करते हुए जल संरक्षण कर लेते हैं ।
-अशोक कुमार पचौरी
(जिला एवं शहर अलीगढ से)
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