खुशबू जैसी यादे अब भी कभी खत्म न होने की।
छुपाकर रखी कभी निशानी हल्के में न खोने की।।
बहुत अजूबे होते देखे अबतक रिश्ते-नातेदारो के।
चाह सभी की एक जैसी जीवन सुख में जीने की।।
अपने अपने ही होते लड झगड कर गैर कर लिये।
दिल तोडने वाले भी रोते आदत जिनकी पीने की।।
हर लम्हे में शामिल दुख 'उपदेश' छुपाए फिरते है।
सूनेपन का आलम उनका दिन लम्बा राते रोने की।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद