बदरंग है बहुत यह ना कोई शबाब है
जिन्दगी अपनी एक खुली किताब है
गुलजार है चमन सारे गुल खिले हुए
बीच कांटो के मगर अपना गुलाब है
तस्वीर देख कर ये मैं हैरान रह गया
पास जब आकर देखा बस नकाब है
ये दास आजकल का दौर है निराला
खुद को मानता हरेक ही लाजवाब है
पीते हैं रात दिन तिशनगी मिटती नहीं
है कलम का जाम तो शायरी शराब है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




