वो चांद अधूरा, ये मद्धम चांदनी..
आज नहीं, मेरे हमकदम चांदनी..।
रात भी है जाने, क्यूं अनमनी सी..
पेड़ो के सायों से भी अदम चांदनी..।
तेरे होने से थे, किस्से महताब के..
अब क्यूँ हो गई, अहम चांदनी..।
तेरी याद है, तन्हाई है, बेदर्द हवा भी..
ऐसे में गहरे कर गई, ज़ख्म चांदनी..।
मैं मुहब्बत की कोई ग़ज़ल लिखूंगा..
अगर हो जाए, कभी कलम चांदनी..।
पवन कुमार "क्षितिज"