कविता : दो धार....
बहुत अच्छी हो
खराब तुम नहीं
तुम जैसी दूसरी भी है
वह भी कम नहीं
मैं तुम से बहुत
प्यार करता हूं
मगर मैं वह दूसरी
से भी मरता हूं
मेरे जिंदगी में तुम्हारा
महत्व खास है
मगर वह दूसरी भी मेरी
धड़कन और सांस है
मैं तुम्हारे और उसके
दिल में बसा हूं
असल में तुम दोनों के
चक्कर में मैं फंसा हूं
कभी सोचूं मैं तुम्हें
अपने घर ले आऊं
फिर सोचूं तुम्हें घर ले आऊं
तो उसे कहां ले जाऊं ?
मैं जकड़ा तुम
दोनों के प्यार में हूं
असल में न वार न
पार मैं दो धार में हूं
असल में न वार न
पार मैं दो धार में हूं.......