चाह जब कभी भी बेपनाह हो गई
समझ लो जिन्दगी ये गुनाह हो गई
जब कली थी बाग में महफूज थी
फूल बनकर आते ही तबाह हो गई
खतरों से खेलना जिन्हें भी आता है
मुश्किलें उनकी बस तमाम हो गईं
मंजिलों का पक्का इरादा करते ही
पत्थरों के बीच भी ख़ुद राह हो गईं
अर्थ की ताल पर ही नाच नाच कर
आत्माऐं कोठे की कलाकार हो गईं
दास हमको हर कदम पे पत्थर मिले
तालियाँ तो सारी तुम्हारे नाम हो गईं
अब तुम्हें कहां फुर्सत बात करने की
जिन्दगियां बहुत तेज रफ़्तार हो गईं | |