एक कविता उसके नाम, एक कविता उसके नाम,
जो थी दिल की बेहद पास,
जो थी सबसे खासम–खास,
जिसकी एक आवाज को सुन मैं छोड़ के जाता सारे काम,
एक कविता उसके नाम...
जो बड़ा इतराती थी जो बड़ा इठलाती थी,
जरा–जरा सी बात में जो अपना मुंह फुलाती थी,
जिसके बिन मुझको न था एक भी पल आराम,
एक कविता उसके नाम...
जो रोज़ सुबह खिड़की पे जाके अपना बाल बनाती थी,
धूप निकलते ही छत पे जो जा खड़ी हो जाती थी,
जिसकी एक झलक को तरसते बच्चे, बूढ़े हों या जवान,
एक कविता उसके नाम...
जिसकी पायल की धुन सुनकर मैं भी कभी झूमा करता था,
जिसकी एक झलक को पाने उसकी गली घूमा करता था,
जिसके नाम से मैं था बदनाम,
एक कविता उसके नाम...
जो कभी कहती थी मुझसे छोड़ न जाना मुझको यार,
जो कहती मुझसे कि वो करती है मुझसे बेहद प्यार,
चली गई जो लेकर पगली मुझसे ही बेवफ़ाई का इल्ज़ाम,
एक कविता उसके नाम, एक कविता उसके नाम..!!
----कमलकांत घिरी', मनकी, मुंगेली, छत्तीसगढ़।