कविता : शून्य....
इंसान में न धैर्य
न सफर है
इंसान फिर जा
रहा किधर है ?
बेवजह दिमाग
को चाट रहा
इंसान, इंसान को
ही काट रहा
काश इंसान, इंसान ही
बनता तो होता धन्य
मगर इंसान की इंसानियत
ही हो गई आज शून्य
मगर इंसान की इंसानियत
ही हो गई आज शून्य.......
netra prasad gautam