प्रेम का एक छोर दूसरे की तलाश में।
अधूरी ख्वाहिशें पूरी करने की आस में।।
झुंड पगडंडी के रास्ते गाँव से स्कूल तक।
सखियों से अठखेलियाँ चलती विश्वास में।।
तभी मन के रिश्ते बन जाते निगाहों से।
ना कोई नाम होता ना किसी की बंदिश में।।
बहती हवा सा बंधन बिल्कुल मुक्त होता।
फिर भी नजर इधर-उधर उसकी तलाश में।।
खौफ नही था 'उपदेश' अजनबी के बावजूद।
मोहब्बत से डर था चढ़ती उतरती साँस में।।
बिना सीने से लगाए वो दिल मेरा ले गया।
आज भी छटपटाती नासमझी की प्यास में।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद