कविता : पड़ोसी, पड़ोसी....
पड़ोसी पड़ोसन को
खिड़की से झांकने लगा
झांकते झांकते उसने
उस से कुछ मांगने लगा
ऐसे करते करते पड़ोसी
पड़ोसन के पास जाने लगा
वहीं जा कर कभी कभी
चाय नाश्ता खाने लगा
ऐसे करते करते पड़ोसी
पड़ोसन को पटाने लगा
पटाते पटाते वो तो
उस को फसाने लगा
ऐसे में पड़ोसन भी
पड़ोसी से फंस गई
वो उसके दिल में
वाकई में बस गई
फिर पड़ोसी
पड़ोसी से बोला
उसने अपनी
मन की बात खोला
तेरी बीबी अब
कहां तेरी है
अब तो तेरी
बीबी मेरी है
फिर दूसरा पड़ोसी
बोला लेजा अगर तेरी है
तेरी बीबी तो अरे
पगले पहले से ही मेरी है
तेरी बीबी तो अरे
पगले पहले से ही मेरी है.......
netra prasad gautam