ख्वाब धरे के धरे रह गये हकीकत के आगे।
झुकना पड गया मुझको भी मेहनत के आगे।।
पानी तो लबालब रहा मगर किस काम का।
प्यास बुझी नही खारेपन की ताकत के आगे।।
शहर में सांस लेना भारी पडने लगा मुझपर।
दवाई बढ गई 'उपदेश' दमा की लत के आगे।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद