(कविता ) (गरीब ही रहने दाे)
दाे दिन ही हुए संसद में संसदशत्र चल रहा
काेई कुछ बाेल रहा है काेई कुछ बाेल रहा
वहाँ एक सांसद ने प्रश्न काल के दाैरान
ऐसी बात उठाई की सब के सब रहे हैरान
हमारे देश में गरीब ही गरीब भरे हैं
काेई काेई लाेग ताे यहाँ भूख से भी मरे हैं
ये लाेगाें काे गरीबी रेखा से उपर उठाना है
अब हम सब मिल अपना देश बनाना है
संसद में ये बात जबर्जदस्त भीड़ गई
बांकी छोड़ गरीब के लिए बहस छिड़ गई
एक बाेला देश में साठी प्रतिशत गरीब हैं
दूसरा बाेला ना तीस प्रसेन्ट करिब हैं
तीसरा बाेला फिर..देखाे बात सही है
असल में गरीब का सही सही आंकड़ा नहीं है
ये सुन चाैथा भी बाेला तुम सब की बात है बेकार
आंकड़ा- बांकड़ा जाे भी हाे सब काे छोड़ो यार
सभापति महाेदय हमारे यहाँ काफी गरीब हैं
वे लाेग भूख के कारण माैत के करिब हैं
उनके लिए स्वास्थ्य शिक्षा रोजगार
किसी हाल में काेई न हाे बेरोजगार
अगले बजेट में ऐसा प्रावधान किया जाए
काफी सारा रासी उन काे ही दिया जाए
इ स बात पर दाे चार सांसदाें ने हंगामा उठाया
एक सांसद ताे वहाँ पर बहुत चिल्लाया
काहे दूध में गाेबर घाेल रहे हाे
अरे तुमें पता भी है क्या बाेल रहे हाे
यदयपी इ स प्रकार का निर्णय लेंगे ताे
सारा का सारा बजेट उन्हें ही देंगे ताे
दाे चार उद्योगपति अाैर नेता लाेग क्या खाएंगे?
सड़क पर अाएंगे अरे हम ताे भूखे मर जाएंगे
सांसदाें ने इ स बात पर गहन बिचार-विमर्श किया
अन्तिम में जा कर वेह सबने ये निर्णय लिया
गरीब की दु:ख: पीड़ा उन्हें ही सहने दाे
गरीब काे गरीब ही रहने दाे
गरीब काे गरीब ही रहने दाे.......
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