जाना पड़ेगा फिर किस बात की खुशी।
हाँ हो सकती जरूर मद-रात की खुशी।।
मंजर जो देखे गए अब न होंगे सामने।
डाली पर फूल मुरझाया गई आई खुशी।।
जिस्म के अन्दर सफर में रूह मिल गई।
रूह के बाहर 'उपदेश' साल की खुशी।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद