कुछ कुछ समझने लगी ये घर नही पड़ाव है।
नारी की जिन्दगी का नाम ही उतार चढाव है।।
हमारे तजुर्बे ने मायने बदल दिये जिन्दगी के।
जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी जिन्दगी की नाव है।।
हर एक रिश्ता निभाना पड़ेगा अपनी दम से।
तरकीब निकलनी होगी इसी में छुपा भाव है।।
दया भाव रखने की मेरी फितरत का क़ुसूर।
वक्त-वक्त पर ताने और तरह-तरह का दबाव है।।
मशवरा और मरहम समझने लगी हूँ अच्छे से।
मतलबी रिश्ते 'उपदेश' भरोसा का अभाव है।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद