लूट - डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
दिवाली पर,
अंकी इंकी डंकी लाल।
लूट लूट कर,
भर रहे थे तिजोरी।
छापा पड़ा,
कर रहे थे सीना जोरी।
निकल गया देवाला,
लेकर बैठा जहर का प्याला।
नाली के रैंगते हुए कीड़े,
भ्रष्टाचारी बेंगन के पकोड़े।
सड़े हुए बेसन के चीले,
फटी हुई चाय के पतीले।
जिसकी लाठी, उसकी भैंस।
अब अपने ,पाप की गठरी खेंच ।