पहाड़ों की कोख से नदियों का जन्म।
इनको जनक कहें या चमन का अमन।।
नदियों की कलकल में सदा प्रेम बहता।
समुन्दर में मिलने के बाद आता अमन।।
पानी रूप बदल कर उड़ता आसमान से।
फ़िर बरस कर धरती् जन्म देती अमन।।
प्रेमी होना आसान नही रूकावटे ज्यादा।
रास्ते खुद बनाने पड़ते हरियाली अमन।।
पृथ्वी पर जन्म लेने वालो के लिए अमृत।
वसुन्धरा माँ जैसी 'उपदेश' जगत उपवन।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद