ए कैसा गुरूर करें
ओ...नादान इंसान
बसमें नहीं कुछ भी
फिर... क्यों करें गुमान
चार दिन की चांदनी
फिर...होंगी अंधेरी रात
ऐसे ही नहीं कहां किसीने
है ये बड़ी ही सच्ची बात
जो पाया कर्म का
वो हकीकत मान
गर आया उसमें अभिमान
तो होंगे बुरे अंजाम
यहां वहां झाँक है, कई बदलाव
आए -गए ऐसे कई
जो बन गए है,भूतकाल