पंच में जाति धर्म झूठ अनीति नहीं।
पंच परमेश्वर लिख आए थे मुंशीजी।
इच्छा हुई समाज मानव मूल्य देखे।
बरसों गुजर गए आजादी आए हुए।
मुशीजी चले पड़े है देखने भाईचारा।
मित्रता सौहार्द जुम्मन अलगू में रहा।
पंच पद की मरजादा गरिमा प्रतिष्ठा।
आजाद भारत में वह न्याय व्यवस्था।
पंच परखे खरा खोटा परमेश्वर वास।
देश धर्म नीति न्याय सदियों से चला।
समाज न्याय की बेड़ियों में जकड़ा।
पंच बन क्या गरिमा रख सके आज।
आजादी आई न्याय क्यों तड़प रहा।
न्याय के पतन की दास्तां लिख रहा।
बरसों इस चौखट पर एड़ियां रगडी।
पीढियां मरती न्याय जिंदा नहीं हुआ।
मुंशीजी सोच रहे समाज किधर बढ़ा।
जुम्मन का पैसा इज्जत बड़ी हो गई।
पंच औकात अलगु के कद तक थी।
आज जुम्मन के साथ पंचायत खड़ी।
यहीं बलात्कार में कोई फांसी चढ़ता।
कौन रहा यहां न्याय का मुंह चिढ़ाता।
उसकी महिमा समाज को सुना रहा।
कोई बलात्कार का रिकॉर्ड बना रहा।
न्याय जाने कब इतना बौना हो गया।
न्याय सता के हाथ खिलौना हो गया।
धर्म रक्षक धर्म गुरु से राज गुरु हुआ।
कानून उसकी ड्योढ़ी का कुत्ता हुआ।
खाला न्याय तक नही पहुंच सकेगी।
अलगु की जबान यहां पर न चलेगी।
हर करीमन जली कटी ही सुनाएगी।
हर जुम्मन में शैतान का बास होगा।
बूढ़ी खाला अब सेवा से वंचित होगी।
जुम्मन की नीयत है जमीन दबाएगी।
बेगम करीमन तो कड़वी बातें करेगी।
ज्यादा तेज तीखे सालन देती रहेगी।
खाला ढूंढती रही कानून का दरवाजा।
जो दरवाजा गरीब के लिए नहीं खुला।
जुम्मन अलगु न्याय को धर्म मे बंट गए।
परमेश्वर कबसे खुदा ईश्वर में बंट गया।
सुरेश गुप्ता

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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