धरती पर जन्म लिया है मैंने।
पहचान मेरी कुछ भी तो नहीं।
कभी बेटी नाम है मुझको,
कहीं बहन बुलायी जाती हूँ।
कभी माँ रूप दिया है मुझको।
कहीं पत्नि मैं कहलाती हूँ।
सृष्टि का विस्तार हुआ है मुझसे,
मैं प्रसव की पीड़ा सहती हूँ।
शिशुओं को जन्म दिया है मैंने,
हर रूप में ममता देती हूँ।
फिर भी समाज की नफ़रत पाती हूँ।
हर रोज़ बलि चढ़ जाती हूँ,
कहीं जलायी जाती हूँ,
कहीं स्वयं जल जाती हूँ।
सहना मेरी किस्मत था,
चुप रहना मेरा अधिकार।
बदले में चाहा बस मैंने स्वजनों का लाड़–दुलार।
अब वक़्त बदला, युग बदला, बदल गया परिवेश,
सोच बदल गयी नारी की, बदल गया है भेष।
नारी रही नहीं अब अबला, वो बन गयी अब सबला।
नारी को अब स्वयं के लिये आवाज़ उठानी होगी,
हौसले बुलंद कर अपने, स्वयं ही अपनी पहचान बनानी होगी।
नारी रही नहीं अब अबला।
वर्ल्ड कप विजयी है नारी, वो अंतरिक्ष में भरती है उड़ान,
देश के कोने–कोने में मिलता है उसको भी सम्मान।
— सरिता पाठक


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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