जब नया नया जवानी में प्रवेश रहा।
उस वक्त कहाँ किसे अफसोस रहा।।
कब आए घर मे और कब चले गए।
जो मन में आया किया ना होश रहा।।
नजर मिली मगर जुबान हिली नही।
एक झटके में हटाई कुछ ना शेष रहा।।
उसके हसीं वज़ूद पर चश्मे के निशान।
मुझे याद है वो भेष अब ना भेष रहा।।
निगाह प्यार से फिर कभी उठी नही।
उसके तरफ से 'उपदेश' कमोबेश रहा।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद