खुद को बुझाता है, खुद को जलाता है,
वो जुगनूँ अँधेरों से अकेले टकराता है।
दुनिया हँसती देख कर उसकी हिम्मत,
वो अकेला पूरी फ़ौज से भीड़ जाता है।
जिसको देख काँपने लगे अच्छे-अच्छे,
अपने दम पर डर को डर से डराता है।
लड़ना पड़ता है अपना जंग खुद को ही,
वो लड़ कर, हम सबको ये सिखाता है।
जिद्दी होना पड़ता है, जीतने के लिए,
करार ताउम्र, हर कदम पर हराता है।
🖊️सुभाष कुमार यादव