परछाई पीछे छोड़ मर्जी से चलें...
परछाई पीछे हाँ, पीछे छोड़कर चलें
सिर्फ़ बिन मर्जी से, कहाँ कहाँ तक चलें !!
संजोग ऐसा कभी सजे, साया आगे चलें
मर्जी फिर वहाँ, विचारी आहे भरती चलें !!
क्यों न हम उसके इशारो के संग ही चलें
राहें अवगत वो करें, मंजिल तक ले चलें !!
जैसे अनुभव की झांकी सजाएँ निर्णय चलें
क्यों उलझने खुद खड़ी कर संसय में चलें !!
जगत की रीत कहती समर्पण कर चलें
नि:स्वार्थ भावना से, प्रेरित होकर चलें !!
सफ़ल फिर ज़िंदगानी खिले, हाथ थामे चलें
मेरा-तेरा भरम है सारा, जिसे त्याग आगे चलें !!
चलो चले हो सके तो स्नेह बाँट प्यार से चलें
जहां भी सोंच ख़र्चे, ये कैसा उत्साह भर चलें !!

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




