हर तरफ कातिलों के चेहरे है।
कहाँ जाए निगाहों के पहरे है।।1।।
अब कैसे दिखाएं दर्द तुमको।
इस ज़िन्दगी के ज़ख्म गहरे है।।2।।
दूर-दूर तक मिलेगा ना कोई।
हर शू ही बस सन्नाटे पसरें है।।3।।
वीराँ हो गई अपनी वो बस्ती।
जहाँ पे हम हिल मिल खेले है।।4।।
खामोश हो गए बाग बागीचे।
उड़ गए दरख्तों से परिन्दे है।।5।।
कैसे कहे वो सूरत से हंसी है।
उनमें शर्मो हया के न परदे है।।6।।
राख हो गए सब घर जलकर।
हर तरफ देखों गर्द के सहरे है।।7।।
ठिकाना ना बचा अब अपना।
ये सबके सब दुश्मनों के हुजरें है।।8।।
अब कैसे बतायें तुम्हेँ कितने।
इस मुर्दे शहर के सब मसले है।।9।।
क्या करोगे जानकर शहर को।
हर तरफ बरबादियों के चर्चे है।।10।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ