रक्तबीज की तरह बढ़ती जनसंख्या
इसको रोकना ज़रूरी है।
राजनीति के घंटा बजाना तो सरकारों की
मजबूरी है।
अरे मूर्खों आंख के अंधों पढ़े लिखे बेवकूफों शैतान के फूफों।
क्या तुम समझते नहीं कि बढ़ती जनसंख्या
तो सुरसा है जो तुम्हारी खुशियों को लील
जायेगी।
आज़ तुम जाती जाती खेल रहे हो
कल सुरसा के मुंह में जाने की तुम्हारी बारी है।
अरे नेताओं की भड़काऊ भाषणों से
सिर्फ़ नेताओं को फायदा होगा।
और तुम अदद रोटी नमक के लिए भी
तरस जाओगे ....
अंततः तुम्हारा कुछ भी ना होगा।
बढ़ती जनसंख्या में बढ़ती महंगाई है।
सिर्फ दुख दर्द मज़बूरी है।
ना चाहते हुए भी अपनों से दूरी है।
तुम्हें अपनों बच्चों का भी ख्याल नहीं
दुहाई है दुहाई है।
देखना कभी चौक चौराहों नुक्कड़ स्टेशनों
मेट्रो पर ......
हजारों भूख प्यास से तड़प रहीं आंखें तुम्हें नोच लेंगी।
क्या तुम्हें इन पर दया मोह नहीं है।
देखना कभी किसानों के घर जाकर।
मिडल क्लास आदमी के घर जाकर ।
कभी बिन खाए सोए हो सिर्फ़ पानी पीकर।
कभी घर में बूढ़े होते भाई बहनों को
क्या तुम्हें बढ़ते भय भूख भ्रष्टाचार के
कारणों का पता किया है।
सबका जड़ ये बढ़ती जनसंख्या है।
रोक लो भाई रोक लो।
अब और कितनी तबाही झेलना चाहते हो
क्या जीते जी मर जाना चाहते हो।
कुछ फ्यूचर के बारे में भी सोंच लो
भाई अभी भी वक्त है मेरे प्यारों यारों
इस बढ़ती जनसंख्या को रोक लो...
इस बढ़ती जनसंख्या को रोक लो...

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




