इस तरह गम को अब हम भुनाने लगे हैं
दर्द जब भी मिला लब गुनगुनाने लगे हैं
हुए जो भी तन्हा मन के दर्पण में झांका
देखके अपनी सूरत हम मुस्कुराने लगे हैं
ना भटके मुसाफिर कोई कभी रास्तों में
हरेक शाम यह दिल अब जलाने लगे हैं
मुक़ददर ने लपकके सारे सपने यूं छीने
अश्क़ रात दिन अब झिलमिलाने लगे हैं
कहाँ दास जाएँ इस अजनबी से शहर में
हरेक घर के आगे जब शामियाने लगे हैं