करीं कोशिशें लाख उड़ने के खातिर,
मगर ये हवा निकली कुछ ज़ादा शातिर,
उड़ने के काबिल नहीं पंख मेरे,
फिर भी बुलंद हौसले कर लिये हैं,
जहाँ देखना है................
बूँदों पे रख के कदम आसमाँ तक,
चढ़ना है ऊपर फलक के जहाँ तक,
सब लोग बोलें कहाँ से कहाँ तक,
पहुँचा हूँ मैं अपने नाम-ओ-निशाँ तक,
गुलाबी परिन्दे जहाँ उड़ रहे हैं,
असमान जिनकी जमीं बन गई है,
शक्लें बना ली बड़े बाज़ जैसी,
जन्नत के जैसी खुशी बन गई है,
उन्हें फर्क है न कोई बारिशों से,
लपटें और लू दोस्ती बन गई है,
वो जाम पीते हैं तूफानों के संग,
आँधी तो परदानशीं बन गई है,
हमें चाहिये आसमाँ की चमक वो,
उजाले से हम भीख भी माँग लेंगे,
अँधेरा मेरी दोस्तियाँ माँगता है,
रजा पूरी न की तो हम थाम लेंगे,
अँधेरा भी काफी बड़ा हो चुका है,
छुटा साँड़ कातिल पड़ा हो चुका है,
मेरा संग पाने को बेचैन है वो,
सजधज के कैसा खड़ा हो चुका है,
लड़ लेना तुम भी और लड़ लेंगे हम भी,
देखेंगे ताकत दिखा देंगे दम भी,
बहुत देर शिकवे गिले कर लिये हैं,
लड़ने के अब सिलसिले कर लिये हैं,
लड़ने के काबिल नहीं पंख मेरे,
फिर भी बुलंद हौसले कर लिये हैं,
जहाँ देखना है.......................
विजय वरसाल..............