दिल से अपने ज़रा दुआ कीजिये
दिल से ग़ज़लों को सुना कीजिये
लिख रही हूँ ग़ज़ल आप के लिये
दिल लगाकर इसे पढ़ा कीजिये
मेरी ग़ज़लों में होती है दीवानगी
ग़ौर इसपर साहेब ज़रा कीजिये
जो कहानी मुहब्बत की मैंने लिखी
ठंढी आहें न कोई भरा कीजिये
चाहतों का चलेगा यूँ ही सिलसिला
साथ मेरे कदम दो चला कीजिये
दर्द बढ़ जाए दिल में पढ़के ग़जल
दर्दे दिल की न कोई दवा कीजिये
बेबहर हो गई जो गुंजन ग़ज़ल
देखिये पर न कोई गिला कीजिये
----डाॅ पल्लवी "गुंजन"