©जानि जो जानी
जानि हम तो ना जानी,
जो जानी वो भी अनजानी ,
अनजानी चेहरा कब पहचानी,
पहचानी वही जो दर्पण बयानी,
बयानी कभी नहीं सच बतानी,
बतानी वही जो स्वार्थ कछू कही कहानी,
कहानी नहीं वो अज्ञान की जुबानी,
जुबानी वही जो दर्द विरानी,
विरानी मैं रही टुकड़ों जो जीवन बितानी ,
बितानी वही जो प्रेम समानी,
समानी वहीं जो मैं जानि,
जानि वही जो मैं जानी,
नहीं जानी वही मानी,
तो क्यों मन अभिमानी।।
- ललित दाधीच।।