हालात में उलझे नसीब को कोसते।
फिर वो नज़रिया बदलना कैसे सोचते।।
परिस्थिति अनुरूप अभी होती नही।
ईश्वर के दूत के बिना हम कैसे उड़ते।।
अंदरूनी शक्ति को दिशा न मिलती।
स्थिति बदलने की कोशिश कैसे करते।।
हर एक परिस्थिति तजुर्बा बनती गई।
बढ़ाई हिम्मत नही बढ़ाते तो कैसे जीते।।
समाज की निगाह में मेरी सोच ऊँची।
सच में 'उपदेश' के बिना कैसे संभलते।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद